आप श्री राम सेना से कभी भी और कहीं भी दंगे करवा सकते हैं बस आपके पास सही कीमत अदा करने की कुव्वत होनी चाहिए.
इस वाक्य को यूट्यूब पर टाइप करने पर 133 वीडियो परिणाम मिलते हैं. पहले वीडियो को अब तक तकरीबन तीन लाख लोग देख चुके हैं. यही वाक्य गूगल सर्च पर लिखा जाए तो 69 हजार वेबसाइटों का संदर्भ मिलता है. संबंधित घटना 24 जनवरी, 2009 की है. उस दिन मंगलौर के एक पब में तकरीबन 35-40 लोगों ने जबर्दस्ती घुसकर महिलाओं पर हमला बोल दिया था. मारपीट की इस घटना को एक दक्षिणपंथी संगठन श्री राम सेना, जिसे इससे पहले तक शायद ही कोई जानता हो, के सदस्यों ने अंजाम दिया था. संगठन के कैडरों का कहना था कि सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं का शराब पीना 'असभ्य आचरण' की श्रेणी में आता है और यह 'हिंदू संस्कृति और परंपराओं' का अपमान है. इस घटना के दो दिन बाद ही भारतीय गणतंत्र की साठवीं सालगिरह थी. 26 जनवरी को पूरे दिन राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर पब से निकलकर दौड़ती, गिरती-पड़ती और पिटती महिलाओं का वीडियो फुटेज दिखाया जाता रहा (यह वीडियो फुटेज टीवी चैनलों को सिर्फ इसलिए मिल पाया था कि पब पर हमला करने के आधा घंटा पहले सेना ने खुद ही पत्रकारों को इसकी सूचना दी थी). टीवी चैनलों पर दिखाए जाने के बाद यह घटना हर जगह चर्चा का विषय बन गई. फ्रांस, रूस और जर्मनी तक के पत्रकारों ने इस घटना की रिपोर्टिंग की. इस तरह दो दिनों में ही श्री राम सेना घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया.
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" मैं इसमें सीधे शामिल नहीं हो सकता. मेरी एक छवि है, समाज में कुछ प्रतिष्ठा है. लोग मुझे सिद्घांतों वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं, एक आदर्शवादी और हिंदुत्ववादी के रूप में देखते हैं "
प्रमोद मुतालिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राम सेना
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एक संगठन के रूप में सेना ने हमेशा खुद को एक उग्र हिंदूवादी संगठन साबित करने की कोशिश की है. सेना के नेता यह दावा करते रहे हैं कि वे हिंदू धर्म और संस्कृति के झंडाबरदार हैं और उनके कार्यकर्ता इस काम में लगे हुए कर्मठ सिपाही. उनके खुद के शब्दों में, अपने हिंदूवादी एजेंडे को लागू करने के लिए उन्हें लोगों से मारपीट करने, संपत्तियों और कलाकृतियों को नष्ट करने और धर्म से बाहर जाकर जोड़ी बनाने वालों को अलग करने में कोई झिझक नहीं. कुल मिलाकर इस संगठन का पहचानपत्र हिंसा है, नैतिकता और संस्कृति की आड़ में की जाने वाली हिंसा.
हालांकि इस संगठन और उसकी कारगुजारियों के बारे में तहलका की छह सप्ताह तक चली तहकीकात बताती है कि सेना के संस्कृति और नैतिकता की रक्षा के दावे किस तरह एक पाखंड भर हैं. 'धर्म रक्षा' के लिए तात्कालिक हिंसक प्रतिक्रिया करना श्री राम सेना के कार्यकर्ताओं का सिर्फ एक घृणित चेहरा है. असल में तो यह संगठन सनकी और आवारागर्द लोगों का एक ऐसा झुंड है जिसे पैसे देकर भी अपना काम कराया जा सकता है. 'दंगे के लिए ठेका' लेने वाले इस संगठन की असलियत उजागर करने वाली तहलका की तहकीकात बताती है कि इससे तोड़फोड़ करवाने के लिए बस आपको कुछ कीमत चुकाने के लिए तैयार होना है. श्री राम सेना के इस चेहरे को सामने लाने के लिए एक तहलका संवाददाता ने खुद को कलाकार बताकर श्री राम सेना के अध्यक्ष प्रमोद मुथालिक से मुलाकात की. उसके सामने एक प्रस्ताव और तर्क रखा. तर्क यह था कि नकारात्मक प्रचार भी आखिर प्रचार ही होता है, प्रस्ताव यह था कि श्री राम सेना कलाकार के चित्रों की प्रदर्शनी पर हमला करे जिससे देश-दुनिया में सभी लोगों का ध्यान उसके चित्रों की ओर चला जाए और वह बाद में ऊंचे दामों पर इन्हें बेच सके (मुथालिक को यह भी बताया गया कि ये चित्र हिंदू-मुसलिम सद्भाव से संबंधित हैं और इनमें खासकर हिंदू-मुसलिम शादियों का चित्रण है). बदले में मुथालिक और सेना को वह प्रचार तो मिलता ही जो मंगलौर पब पर हमले के बाद मिला था, साथ ही इस उपद्रव को आयोजित करने का मेहनताना भी मिलता. इस प्रस्ताव पर मुथालिक की प्रतिक्रिया में गुस्सा या डर कतई नहीं था. उसने तुरंत तहलका संवाददाता को सेना के कई सदस्यों के फोन नंबर दे दिए और फिर एक के बाद एक ऐसे कई आपराधिक चेहरे सामने आते गए जो पेशेवराना अंदाज़ में अराजकता फैलाने के उस्ताद थे. इस पूरी कहानी को जानने से पहले शायद श्री राम सेना और इसके संस्थापक के अतीत के बारे में जानना बेहतर रहेगा.
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" श्री राम सेना के पास एक बहुत बढ़िया टीम है, जो भी आप करवाना चाहते हैं कर देंगे. हमारे पास हर चीज की सेटिंग है. सिर्फ एक ही प्रॉब्लम है- मनी प्रॉब्लम " कुमार, मंगलौर में श्री राम सेना का एक सदस्य
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श्री राम सेना की शुरुआत 2007 में प्रमोद मुथालिक ने की थी जो अब भी इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष है. उत्तर कर्नाटक के बगलकोट में जन्मे मुथालिक ने अपने शुरुआती दिन हिंदू दक्षिणपंथी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ गुजारे. वह 13 साल की उम्र से ही शाखा जाने लगा था. 1996 में आरएसएस में उसके सीनियरों ने मुथालिक को अपने सहयोगी संगठन बजरंग दल में भेज दिया. दल का दक्षिण भारत का संयोजक बनने में मुथालिक को एक साल से भी कम समय लगा. मुथालिक को जानने वाले उसे महत्वाकांक्षी, समर्पित और तीखा वक्ता कहते हैं. आरएसएस और इसके दूसरे संगठनों के साथ अपने 23 साल के जुड़ाव में मुथालिक का कई बार कानून से आमना-सामना हुआ और अपने ऊपर लगे भड़काऊ भाषण देने के आरोपों के चलते उसे कई बार जेल भी जाना पड़ा.
हिंदुत्व के प्रति उसके तथाकथित समर्पण का जब उसे कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला तो 2004 में उसने आरएसएस से अपना नाता तोड़ लिया. उसने दावा किया कि आरएसएस और इससे जुड़े अन्य संगठन पर्याप्त सख्ती न अपनाकर हिंदू हितों से गद्दारी कर रहे हैं. इसके बाद यह अपेक्षित ही था कि 2007 में स्थापना के बाद से ही अत्यंत कट्टर हिंदुत्व की राजनीति श्री राम सेना की पहचान बन गई. मुथालिक कहते हैं कि हिंसा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है. राजनीति के केंद्रीय रंगमंच पर आने की कोशिश में 2008 में मुथालिक ने राष्ट्रीय हिंदुत्व सेना का गठन किया, जो श्री राम सेना का राजनीतिक धड़ा है. लेकिन यह बुरी तरह से नाकाम रही. चुनाव लड़ने वाला इसका कोई भी उम्मीदवार अपनी मौजूदगी तक दर्ज नहीं करा सका. तहलका से बात करते हुए मुथालिक ने कैमरे के सामने यह स्वीकार किया कि उसके उम्मीदवार राज्य चुनाव इसलिए हार गए क्योंकि 'हमें कामयाब होने के लिए पैसा, धर्म और ठगों की जरूरत है. हमें यह पता नहीं था. आज की राजनीतिक स्थिति बदतर हो गई है.'
चुनावी राजनीति में फिर से लौटने की कोशिश के फेर में मुथालिक और सेना ने और अधिक कट्टर रुख अपनाते हुए 'हिंदू' पहचान को मजबूती देने की योजनाओं के एक सिलसिले की शुरुआत की. हालांकि इस संगठन का मजबूत आधार तटीय और उत्तर कर्नाटक के कुछ इलाकों में है, लेकिन इसकी गतिविधियां इन्हीं इलाकों तक सीमित नहीं हैं. 24 अगस्त, 2008 को दिल्ली में श्री राम सेना के कुछ सदस्य सहमत नामक एनजीओ द्वारा आयोजित एक कला प्रदर्शनी में घुस गए और एमएफ हुसैन की अनेक तसवीरों को नष्ट कर दिया. एक माह बाद सितंबर में मंगलौर में एक सार्वजनिक सभा में बोलते हुए मुथालिक ने बंेगलुरु बम धमाकों का जिक्र किया, जो एक हफ्ता पहले हुए थे और यह घोषणा की कि सेना के 700 सदस्य आत्मघाती हमले करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे थे. उसने घोषणा की, 'अब हमारे पास और धैर्य नहीं है. हिंदुत्व को बचाने के लिए जैसे को तैसा का ही एकमात्र मंत्र हमारे पास बचा है. अगर हिंदुओं के धार्मिक महत्व के स्थलों को निशाना बनाया गया तो विरोधियों को कुचल दिया जाएगा. अगर हिंदू लड़कियों का दूसरे धर्म के लड़कों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा तो अन्य धर्मों की दोगुनी लड़कियों को निशाना बनाया जाएगा.'
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" मैंने पहले 1996 में आरएसएस में काम किया. फिर बजरंग दल में. मैं उस मुख्य टीम में शामिल था जिसने मंगलौर पब में हमला किया था. मगर पुलिस ने जो मामला दर्ज किया है उसमें मेरा नाम नहीं है. मैं कभी गिरफ्तार नहीं हुआ " सुधीर पुजारी , मंगलौर में श्री राम सेना का एक सदस्य
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कुछ महीनों बाद कर्नाटक पुलिस ने राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान हुबली में हुए धमाकों के संबंध में जनवरी, 2009 में नौ लोगों को गिरफ्तार किया. उनका मुखिया नागराज जंबागी सेना सदस्य और मुथालिक का नजदीकी सहयोगी था- इसे तब खुद मुथालिक ने स्वीकार किया था. जुलाई, 2009 में जंबागी की बगलकोट जेल में ही हत्या हो गई. मंगलौर पब हमले के दौरान अपने कैडरों को उकसाने के लिए गिरफ्तार किए जाने के कुछ मिनट पहले मुथालिक ने पत्रकारों से कहा था कि वे इन हमलों को इतना बड़ा मुद्दा क्यों बना रहे हैं. उसने कहा था- 'हम अपनी हिंदू संस्कृति को बचाने के लिए यह कदम उठा रहे हैं और उन लड़कियों को सजा दे रहे हैं जो पबों में जाकर इस संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रही थीं. जो कोई भी मर्यादा की सीमा से बाहर जाएगा हम उसे बरदाश्त नहीं करेंगे.'
मुथालिक के सुझाए 'मर्यादा' में रहने के ये तौर-तरीके आज भी तटीय कर्नाटक में अनेक प्रकार से लागू किए जा रहे हैं. मंगलौर में सेना के कैडर 15 जुलाई, 2009 को एक हिंदू शादी के समारोह में घुस गए और वहां मौजूद एक मुसलिम मेहमान के साथ मारपीट की. पूरे इलाके में मुसलिम लड़के महज हिंदू लड़कियों से बात करने के लिए ही पीट दिए जाते हैं. लव जिहाद (हिंदू लड़कियों को कथित तौर पर मुसलिम लड़कों द्वारा शादी का प्रस्ताव देकर अपने धर्म में शामिल करने की साजिश) के नाम पर स्थानीय लोगों की भावनाओं को भड़काने की भी जमकर कोशिश की जा रही है.
इस तरह अपनी पड़ताल के लिए तहलका के पत्रकार ने खुद को एक कलाकार के रूप में पेश किया और घोषणा की कि उसकी अगली प्रदर्शनी लव जिहाद की सकारात्मक छवि पर होगी. लेकिन इसके बावजूद मुथालिक या सेना के किसी सदस्य पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता दिखा कि वे जिस चीज़ का सैद्धांतिक रूप से विरोध करने का दावा करते हैं उससे संबंधित चित्रों की बिक्री उनके विरोध से बढ़ जाने वाली है.
पेश है तहलका की मुथालिक से मुलाकात का सिलसिलेवार ब्योरा.
तहलका की मुथालिक से पहली भेंट हुबली स्थित सेना के दफ्तर में हुई. कला प्रदर्शनी पर पूर्वनियोजित तरीके से हमले का प्रस्ताव रखने से पहले यह कहते हुए कि 'हिंदुत्व के लिए हम भी कुछ करें', नकद 10 हजार रुपए दान के रूप में दिए गए. मुथालिक ने झट से पैसे लिए और उन्हें अपनी जेब में रख लिया. उसने मना करने का दिखावा करने तक की जहमत नहीं उठाई.
बातचीत के क्रम में एक ऐसा प्रस्ताव सुझाया गया जो दोनों पक्षों के लिए लाभकारी था. मुथालिक के चेहरे पर हमने किसी तरह की हैरानी या अचंभे का भाव नहीं देखा - तब भी नहीं जब तहलका संवाददाता ने यह सुझाया कि प्रदर्शनी बंेगलुरु के एक मुसलिम बहुल इलाके में होनी चाहिए ताकि हमले का अधिकतम असर हो. इस सुझाव पर मुथालिक की एकमात्र प्रतिक्रिय़ा थी - ‘हां. हम ऐसा कर सकते हैं. मंगलौर में भी कर सकते हैं.’ इस तरह एक दूसरे शहर मंगलौर, जहां हमला किया जा सकता था, पर भी बात पक्की हो गई. अगले पांच मिनटों के भीतर मुथालिक ने इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें दो सेना नेताओं- बेंगलुरु शहर अध्यक्ष वसंतकुमार भवानी और सेना के उपाध्यक्ष प्रसाद अवतार से मिलने का सुझाव दिया जो मंगलौर में रहते हैं.
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" मैं आपको बताऊंगा कितना पैसा लगेगा. यह मंगलौर पब अटैक की तरह होगा, बल्कि उससे भी बेहतर होगा.आपको पूरा नेशनल मीडिया कवरेज मिलेगा. मैं आपके लिए सब सेटिंग कर दूंगा "
प्रसाद अत्तावर , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, श्री राम सेना
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तहलकाः मैं चाहता हूं सर मुझे पॉपुलेरिटी मिले और पॉपुलेरिटी मिलेगी तो मेरा बिजनेस भी बढ़ जाएगा... अगर आप कहें तो मैं... आप मुझे एक दायरा बता दें... कि इतना खर्चा आ गया... इतने लड़के होंगे... इतना एडवो... मतलब वकीलों का... हम लोग तो कंप्लेंट ही नहीं करेंगे... क्योंकि वो तो हमारी अंडरस्टेंडिंग है... तो सर लेकिन ये है कि आप मुझे जो बताएंगे मैं एडवांस आपके यहां छोड़ करके जाऊंगा उसके बाद आपको कहूंगा कि ये सर पूरा आ गया है अब सर काम कर दो...
मुथालिकः मंगलौर में कर सकते हैं... बंगलौर.
तहलकाः बंगलौर में शिवाजी नगर वाले एरिया में मुझे पॉपुलेरिटी ज्यादा मिल जाएगी्... क्योंकि वो पूरा एरिया उन्हीं का है... मुसलिम का ही. आपने अगर प्रेस में एक वक्तव्य भी दे दिया और आपके दस कार्यकर्ता भी पहुंच गए... हम तो उसे बंद कर देंगे न... हमें क्या है... लेकिन उसे ये ही ना पॉपुलेरिटी तो मिल ही जाएगी...
मुथालिकः हां कर सकते हैं...
तहलकाः तो सर मुझे एक सीधा बता दीजिए... या मेरे को दो-चार दिन बाद आने को बता दीजिए... आप पूरा बताइए कि पुष्प ये मेरा खर्चा आ रहा है... तुम इतना कर दो... तो सर मैं पूरा करके उसको प्लान कर देता हूं.
मुथालिकः मैं क्या बता रहा हूं... वहां के हमारे प्रेसिडेंट हैं.
तहलकाः बंगलौर के?
मुथालिकः बंगलौर के... वो भी बहुत स्ट्रांग हैं... उनसे बात करके... आप मैं और वो तीनों बैठकर प्लान करेंगे क्या-क्या करना है... फिर करेंगे... डेफिनेट करेंगे
घंटे भर चली बातचीत गालियों, मुसलमानों के प्रति नफरत भरे संवादों और 'उनके द्वारा देश को बांटने की योजना' के इर्द-गिर्द घूमती है. मुथालिक तहलका से कहता है कि लव जेहाद के जरिए मुसलमान अपनी तादाद बढ़ाकर हिंदुओं को पीछे छोड़ना चाहते हैं. वह आगे बताता है कि मुसलमान ब्राह्मण और जैन लड़कियों को निशाना बना रहे हैं ताकि उनके बच्चों में इन जातियों जैसी तेज अक्ल आ जाए जिससे उनके मकसद को मदद मिलेगी. उसके मुताबिक मुसलमानों की यह साजिश पूरे देश में चल रही है और इसकी रफ्तार भी बढ़ रही है. जब हम उससे पूछते हैं कि हिंदू लड़के भी यह काम क्यों नहीं करते तो मुथालिक का जवाब आता है कि श्री राम सेना अब हिंदू युवाओं को भी इस बात के लिए प्रेरित कर रही है.
बातचीत के दौरान हम बार-बार उसके सामने अपना प्रस्ताव दोहराते हैं. मुथालिक को यह प्रस्ताव ठुकराने के कई मौके भी देते हैं. लेकिन ऐसा करने की बजाय वह अपने दूसरे सहयोगियों को इस बारे में बताने की पेशकश करता है जो इस योजना को लागू करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे. अगली मुलाकात की तारीख तय होती है. निजी फोन नंबरों का आदान-प्रदान होता है और मुथालिक हमें एक हफ्ते बाद आने को कहता है.
सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते मुथालिक का रुख इसे लेकर साफ है कि अगर इस योजना में उसकी भूमिका सामने आती है तो उसके लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी, लिहाजा वह कहता है कि योजना के महत्वपूर्ण पहलुओं पर वह अपने सहयोगियों प्रसाद अत्तावर, वसंतकुमार भवानी और जीतेश से बातचीत करेगा और फिर उन्हें तहलका से संपर्क करने को कहेगा. पूरी बातचीत के दौरान कभी भी इस बात को लेकर संशय नहीं पैदा होता कि मुथालिक ही मुखिया है और अंतिम निर्णय का अधिकार उसी के हाथ में है.
मुथालिक के हस्तक्षेप के बावजूद श्री राम सेना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रसाद अत्तावर से संपर्क करना आसान नहीं रहा. अत्तावर हर व्यक्ति को संदेह की निगाह से देखता है और फोन करने पर मोबाइल नहीं उठाता. इसलिए तहलका को उससे मिलने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. मुथालिक के विश्वस्त सहयोगी माने जाने वाले अत्तावर को मंगलौर के पब में हुई घटना का सूत्रधार माना जाता है. 2007 में श्री राम सेना की शुरुआत से ही अत्तावर इससे जुड़ा हुआ है और संगठन के कार्यकर्ता उसकेे एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. अत्तावर मंगलौर में सेना के एक अन्य कार्यकर्ता के साथ मिलकर अपनी एक सिक्योरिटी एजेंसी चलाता है. बाकी लोगों की तरह वह वित्तीय मदद के लिए सेना पर निर्भर नहीं है. जनवरी, 2009 में अत्तावर ने खुलेआम मंगलौर के पब में हुई घटना की जिम्मेदारी ली थी. उस वक्त तहलका के एक रिपोर्टर ने जब एक खबर के सिलसिले में उससे संपर्क किया था तो उसने हमले की योजना बनाने का भी दावा किया था. घटनास्थल पर मीडिया को भी उसने ही फोन करके बुलाया था. कुछ दिनों बाद मुथालिक और अत्तावर समेत 27 लोगों को पब में हुई घटना के संबंध में गिरफ्तार किया गया था. एक हफ्ते बाद जब मजिस्ट्रेट ने उन्हें जमानत दी तो उन सभी का नायकों की तरह स्वागत किया गया था.
अत्तावर के साथ आखिरकार मुलाकात तय हो जाने के बाद सेना के एक कार्यकर्ता जीतेश को तहलका को लेने के लिए भेजा गया. मंगलौर के एक साधारण-से होटल में मुलाकात तय हुई. कुछ मिनट की बातचीत में साफ होने लगा कि वह अपनी गिरफ्तारी से बचने की कोशिश में है और रवि पुजारी गैंग के लिए काम करने के आरोप में पुलिस ने उसके खिलाफ वारंट जारी किया था. पुजारी के बारे में कहा जाता है कि अपना आपराधिक साम्राज्य खड़ा करने से पहले उसने अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम के साथ काम किया है. पर्यटन और होटल उद्योग के अलावा कथित तौर पर पुजारी की दिलचस्पी कर्नाटक के रियल एस्टेट उद्योग में भी है. अत्तावर पर पुजारी के इशारे पर कर्नाटक के तटीय इलाके के व्यापारियों और बिल्डरों को धमकाने का आरोप है.
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" कासरगोड दंगे के लिए मुझपर आईपीसी की धारा 307 के तहत आरोप लगा था. हाफ मर्डर का. मैंने दो या तीन लोगों को तलवार से हत्या कर दी थी. उन्होंने हमारे दो लोगों पर हमला किया था इसलिए हमने उनके दो लोगों को निपटा दिया "
जीतेश , श्री राम सेना की उडुपी इकाई का अध्यक्ष
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मुथालिक ने अत्तावर को सब समझा दिया है. इसलिए जब हम उससे मिलते हैं तो उसे ज्यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं होती. उसके सुझाव बिल्कुल ठोस और बिंदुवार होते हैं. वह हमें कर्नाटक के बाहर भी प्रदर्शनी आयोजित करने और वहां पर हमला करने का प्रस्ताव देता है. वह कहता है, 'हम ऐसा मुंबई, कोलकाता या उड़ीसा कहीं भी कर सकते हैं.' जब तहलका राय देता है कि कलाकार पर हमले का असर काफी बढ़ जाएगा अगर वह अपने सहयोगी रवि पुजारी से कहकर कोई धमकी जारी करवा दे तो अत्तावर सहमति जताते हुए कहता है कि यह हो सकता है. इससे रवि पुजारी के साथ उसका संबंध साबित होता है. एक मिनट बाद ही वह बताने लगता है कि किस तरह पुलिस को भरोसे में लेना होगा, उन्हें सेट करना होगा. इसके अलावा वह यह भी कहता है कि जो लड़के हमले में हिस्सा लेंगे वे मंगलौर से बाहर के होंगे.
तहलकाः हमने तो पुलिस में जाना नहीं है हमने कोई केस भी नहीं करना... तो अगर पुलिस केस डालेगा तो केस रहेगा नहीं क्योंकि कोई पार्टी नहीं है सामने... हम लोग आइडेंटिफाई नहीं करेंगे...
अत्तावरः वो डिपार्टमेंट सेटिंग करके करेगा ना वो मैं करेगा...
तहलका से मुलाकात के छह दिन बाद अत्तावर को मंगलौर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उसे पहले मंगलौर जेल ले जाया गया और फिर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. उसे बेल्लारी जेल में रखा गया था जिसे कर्नाटक की सबसे कड़ी सुरक्षा वाली जेलों में से एक कहा जाता है. बावजूद इसके वह यहां से लगातार तहलका के संपर्क में रहा. तहलका, मंगलौर और बेल्लारी जेलों में भी अत्तावर से मिलने में सफल रहा. मंगलौर जेल में मुलाकात के दौरान जब तहलका ने उससे पूछा कि दो शहरों में दंगे करवाने के लिए क्या 50 लाख रुपए काफी होंगे तो उसका जवाब था, 'मैं फाइनल अमाउंट कैलकुलेट करके आपको बता दूंगा.' सारी बातचीत 'फाइनल अमाउंट’ के इर्द-गिर्द घूमती रही. पर प्रस्ताव का एक बार भी विरोध नहीं हुआ.
प्रसादः क्या क्या करना है... होटल का अरेंजमेंट करना है?
तहलकाः नहीं वो हम करेगा... आपका सिर्फ टीम लगेगा और बाकी सब...
तहलकाः दंगा करना है... मारकाट करना है? 50 लाख खर्चा कर रहा है दो शहर के लिए.
प्रसादः मंगलौर में...
तहलकाः हां, दो सौ कार्यकर्ता करीब-करीब हों वहां पर... एक्जीबीशन के टाइम पर.
प्रसादः हां...
महज 2,500 रुपए जेल के कुछ वार्डनों और बेल्लारी जेल के सुपिरटेंडेंट एसएन हुल्लर को देकर हमें अत्तावर के साथ एक अलग कमरे में मुलाकात करने की छूट मिल जाती है. अत्तावर कहता है कि उसकी जेब बिल्कुल खाली है और वह हमसे कुछ रुपए मांगता है. हम 3,000 रुपए दे देते हैं. इस मुलाकात के बाद अत्तावर अक्सर हमें एसएमएस कर फोन करने के लिए कहता है. हाई सिक्योरिटी जेल में मोबाइल और उसकी कनेक्टिविटी अत्तावर के लिए बहुत आसान चीजें लगती है. बाद में उसके वकील संजय सोलंकी ने हमें बताया कि इसके लिए जेल के सुपिरटेंडेंट को मोटी घूस दी जाती है.
मुथालिक से मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही तहलका ने सेना के बेंगलुरु शहर प्रमुख वसंतकुमार भवानी से संपर्क किया. भवानी सेना का जनसंपर्क अधिकारी भी है. अंग्रेजी और हिंदी में धाराप्रवाह बोलने वाला यह शख्स मंगलौर के पब में हुई घटना के तुरंत बाद ही हरकत में आ गया था और एक के बाद दूसरे टीवी चैनलों के स्टूडियो जाकर सेना की कारगुजारी और उसकी विचारधारा का बचाव कर रहा था. रियल एस्टेट व्यवसायी भवानी पैसे वाला व्यक्ति है और अत्तावर की तरह ही वह भी पैसे के लिए सेना पर निर्भर नहीं है. बंगलुरू में सेना कैडरों की संख्या के बारे में पूछने पर वह कहता है, 'प्रमोद (मुथालिक) भी मुझसे यह सवाल नहीं पूछते. संख्या बतानी जरूरी नहीं. अगर हमारी असली ताकत के बारे में पुलिस को पता चल गया तो मेरे लड़के मुसीबत में पड़ जाएंगे.' (इस साल फरवरी में जब सेना ने वैलेंटाइन डे के विरोध की घोषणा की तो पुलिस ने एहतियाती उपाय के तहत 400 लोगों को गिरफ्तार किया था).
तहलका से मुलाकात के एक पखवाड़े पूर्व ही भवानी ने मुथालिक के अपमान के विरोध में बंेगलुरू में सेना का एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था (उन्हीं की भाषा में जवाब देने वाली एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में कर्नाटक यूथ कांग्रेस के सदस्यों ने वैलेंटाइन डे पर आयोजित एक टीवी चर्चा के दौरान मुथालिक के मुंह पर कालिख पोत दी थी. इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे भवानी और तमाम दूसरे सेना कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया था).
तहलका से मुलाकात के दौरान बातचीत बेंगलुरू में हमले की संभावनाओं, इसके निष्कर्षों और इसके असर को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के आसपास घूमती रहती है. ये रहे भवानी के सुझावः
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" अगर हम एक निश्चित रकम पर सहमत हो जाएं तो फिर मैं अपने बॉस, मुथालिक से बात करूंगा. वे ही हमें एक्शन के लिए ग्रीन सिग्नल देते हैं. उनके पास स्क्रिप्ट तैयार है. आप अपने ऑफर के बारे में सोचिए " वसंत कुमार भवानी, बैंगलुरु में श्री राम सेना का अध्यक्ष
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भवानीः ये रवीन्द्र कलाक्षेत्र मालूम है न आपको.
तहलकाः हां, हां.
भवानीः उसके पीछे एक खुला स्टेज है.
तहलकाः कितना क्राउड आ सकता है उसमें?
भवानीः टू थाउजेंड...
तहलकाः टू थाउजेंड... लेकिन वे कम्यूनल वाइज तो सेंसिटिव है न?
भवानीः कम्यूनल वाइज भी सेंसिटिव है... बोले तो उधर से मार्केट बहुत नजदीक है...
तहलकाः सिटी मार्केट?
भवानीः सिटी मार्केट...
तहलकाः हां फिर तो उधर मुसलिम एरिया है...
भवानीः इसलिए वो जगह बहुत अच्छा है आपके लिए... शिवाजी नगर से वहां बहुत अच्छा स्कोप है क्योंकि वहां भागल में मुसलिम पॉपुलेशन भी बहुत ज्यादा भी है.
तहलकाः हां, सिटी मार्केट में तो है... लेकिन उधर कमर्शियल एरिया ज्यादा पड़ जाता है उधर?
भवानीः आपका जो थिंकिंग है ना उसके लिए सूट हो जाता है उधर...
तहलकाः हमारी जो प्रोफाइल है उसको सूट करता है.
भवानीः उसको सूट करता है... शिवाजी नगर से ज्यादा सूट है... शिवाजी नगर एक रिमोट एरिया हो गया ये फ्लोटिंग ज्यादा है.
तहलकाः शिवाजी नगर किया तो वहां पर ये लगेगा वहां पर एजूकेटिड क्लास नहीं है तो वहां क्यूं कर रहा है... सिटी मार्केट किया तो...
भवानीः आपके आइडिया के लिए और इस कॉन्सेप्ट के लिए ये मैच हो रहा है... क्योंकि इलिटरेट आके आपका गैलरी तो देखने वाला नहीं है... देखेगा तो ये आपका... अपर क्लास... मिडिल क्लास.
तहलकाः एलीट क्लास...
भवानीः अपर क्लास ही ज्यादा देखेगा...तो अपर क्लास... आप शिवाजी नगर में रखेंगे तो कौन आएगा... ये प्रि-प्लांड लगेगा सबको...
तहलकाः हम्म...
भवानीः अगर शिवाजी नगर किया तो... हां ये अगर एक डाइरेक्शन से सोचेंगे तो सही बात ही... लेकिन उसको ज्यादा हवा नहीं मिलेगा...
तहलकाः हां लोगों को कहीं लग सकता है... कहीं अंडर टेबल एलाइंस है...
भवानीः लग सकता है...
घटनास्थल को लेकर सहमति बन जाने के बाद तारीख को लेकर चर्चा होती है. अपने फोन पर कैलेंडर की तारीखें दिखाते हुए भवानी हमसे सुविधाजनक तारीख के बारे में पूछता है. सप्ताह के कामकाजी दिन या फिर हफ्ते के आखिर में? उसकी राय है कि दूसरा विकल्प ठीक रहेगा क्योंकि उस समय ज्यादा लोग कला प्रदर्शनियां देखने जाते हैं. स्थान और तारीख के बाद वह विरोध की योजना पर आ जाता है. जब हम पूछते हैं कि अगर प्रदर्शनी का उद्घाटन मुसलिम समुदाय के किसी नेता से करवाने पर हमले का असर और भी बढ़ जाएगा तो भवानी न सिर्फ रजामंदी जताता है बल्कि कुछ सुझाव भी दे देता है.
तहलकाः इस प्रोग्राम में, वसंत जी, मुझे पब्लिक बीटिंग जरूर चाहिए... क्योंकि आपका जो ट्रेडमार्क है और मैं चाह रहा इसके अंदर किसी मुसलिम लीडर को बुलाना इनेगुरेशन के लिए... तो मुसलिम कम्युनिटी कुछ न कुछ तो रहेगी... प्रोफेसर हुजरा हैं यहां आईआईएम के अंदर...
भवानीः मुमताज अली को ही बुलाइए न...
तहलकाः किसको...
भवानीः मुमताज अली खान...
तहलकाः ये कौन हैं...
भवानीः वक्फ बोर्ड का मिनिस्टर है न... अभी
तहलकाः कर्नाटक से?
भवानीः हां.
तहलकाः आ जाएगा वो तो... कितना एज होगा मुमताज अली का?
भवानीः फिफ्टी के ऊपर हैं...
तहलकाः फिफ्टी प्लस... ये एमएलसी हैं या एमएलए हैं?
भवानीः एमएलसी होके... बैक डोर एंट्री है... मिनिस्टर हैं वो... हज कमिटी और वक्फ बोर्ड...
तहलकाः उसके अलावा एक और था ना जो बाद में रेल मंत्रा भी बना...
भवानीः सीके जाफर...
तहलकाः जाफर शरीफ...
भवानीः वो उमर हो गया उसके तो...
भवानी कुछ और जरूरी तैयारियों का भी सुझाव देता है मसलन घटनास्थल पर एंबुलेंस-
भवानीः जैसे आप हुसेन का ही नाम रख लेंगे तो अच्छा है... उसे एक दम पॉप्युलर...
तहलकाः नहीं अगर हुसेन का रख दिया तो उससे मेरे को ‘माइलेज’ नहीं मिलेगा हुसेन साहब को ‘माइलेज’ मिल जाएगा...
भवानीः उसको माइलेज जाएगा...मैं इसका एश्योरेंस नहीं दे सकता... आपका डेमेज कितना होगा... डेमेज तो होगा... लेकिन कितना होगा ये गारंटी नहीं ले सकता... क्योंकि हमारे लड़के बहुत फेरोशियस लड़के हैं... वो आगे-पीछे नहीं देखते...
तहलकाः एक बार किया तो किया...
भवानीः किया...मैं उनको अवॉइड भी नहीं कर सकता क्योंकि मेरे ऊपर भड़क जाएंगे...जब नेता ही फेरोशस है तो उनके फॉलोअर्स भी फेरोशस होंगे...इतना तो मैं आपको बोलना चाहता हूं...डैमेज तो होगा लेकिन कितना ये बोल नहीं सकता हूं
तहलकाः पब्लिक बीटिंग्स हो सकती हैं
भवानीः हो सकती हैं...उधर आके जो भी आके उनको...क्योंकि ये सब भी कर देते हैं हमारे लड़के
तहलकाः भीड़ वगैरह आई तो फिर कंट्रोल नहीं होता है...
भवानीः कंट्रोल नहीं होता है...
तहलकाः एंबुलेंस तैयार रखना पड़ेगा ?
भवानीः बिलकुल... वो भी हो सकता है... वो फिर मेरे लोग हैं... जब लेते हैं न कुछ... तो... फिर उनको समझाना पड़ता है... बोलना पड़ता है... केस ज्यादा हो जाएगा... पहले से ज्यादा केस हैं... कंट्रोल करो सिर्फ जो ये डिस्पले है उसको थोड़ा ये...
तहलकाः डेमेज करो...
भवानीः इतना तो मैं समझा दूंगा लेकिन... बोल नहीं सकता न... ऐसे सिरफिरे लोग हैं...
तहलकाः मतलब एंबुलेंस पहले से तैयार रखना पड़ेगा... माइंड में रखकर चलें...
दंगों और तोड़फोड़ के लिए सेना की तैयारियों के और भी सबूत हैं. हमले के बाद की स्थितियों पर बातचीत के दौरान जब हम उनके सामने प्रस्ताव रखते हैं कि हम सेना के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं करेंगे तो भवानी तत्काल इस सुझाव को खारिज कर देता है. 'अगर हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज नहीं करवाए जाएंगे तो लोगों के मन में शंका होगी कि हमला पूर्व नियोजित था.' वह कहता है कि उन्हें कोर्ट-कचहरी से कोई फर्क नहीं पड़ता और हमें उनसे कैसे निपटना है, इसके निर्देश हमें मिल जाएंगे.
तहलकाः हमारी तरफ से गैलरी वाले प्रोग्राम के अंदर... आर्ट गैलरी में हम लोगों को कोई केस नहीं करना है... जब कोई राइवल पार्टी ही नहीं है...
वसंतः आपको केस करना पड़ेगा...
(इस बातचीत के बाद अत्तावर की चर्चा के दौरान एक नया सुझाव सामने आता है)
तहलकाः तो केस डालें.
वसंतः डालना पड़ेगा... अगर आप लोग गलती करेंगे तो केस करना पड़ेगा ना हमको.
तहलकाः आपको नहीं लगता कि इसमें मुश्किलें आएंगी?
वसंतः दिक्कत होगी तभी तो परपस पूरा होगा... पानी में उतर गया तो...
तहलकाः ठीक है आप जैसा आदेश करते हैं... लेकिन लगातार डेट पर आना कोर्ट में खड़ा होना... ये शायद किसी भी आदमी के लिए थ्री थाउजेंट किमी से आना टेक्नीकली शायद बहुत-बहुत मुश्किल होगा...
वसंतः उसके लिए रास्ता हम दे देगें न... एक बार आपका ये सक्सेस होने के बाद बैठ के मैं समझा दूंगा... क्या करना है कैसा करना है...
तहलकाः कोई भी लोकल वकील सेट कर दिया वो डेट एक्सटेंड... होती रहेगी...
वसंतः मैं बोल दूंगा आपको... समझा दूंगा... समझा दूंगा कैसा करना है क्या करना है...
तहलकाः ठीक है...
वसंतः लेकिन आप मेंटली प्रिपेयर रहना...
कुछ ही मिनट बाद भवानी तहलका से पैसों की बातचीत करने लगता है. 'मुझे एक आंकड़ा बताओ ताकि मैं सर (मुथालिक) से बात कर सकूं,' भवानी कहता है. हम एक कागज पर 70 लाख लिखकर भवानी की तरफ बढ़ाते हैं. अगली प्रतिक्रिया में वह पूछता है कि अत्तावर (सेना का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) को कितनी पेशकश की गई थी.
जब उसे बताया जाता है कि अत्तावर को भी इतनी ही पेशकश की गई थी तो भवानी यह कहते हुए प्रस्ताव ठुकरा देता है, 'अतावर इतने पर कभी राजी नहीं होगा.' वह कहता है कि पुलिस को निपटाने के लिए हमें कुछ और पैसों का अलग से इंतजाम करके रखना चाहिए.
तहलकाः उन्होंने मुझे दो लाइन बोला था... संगठन के लिए अलग... कार्यकर्ता के लिए अलग... तो मैंने संगठन के लिए 5 लाख कहा... तो बोले देखेंगे... कार्यकर्ताओं के लेवल पे ये तो जायेगा कि केस वगैरह पड़ गया तो ठीक है... कार्यकर्ताओं के लिए 50 हजार... कुछ उसको मिल जाएगा कुछ उसकेे केस में यूज हो जाएगा... दस लड़का आ गया तो 5 लाख... उन्होंने मुझे बोला यूं... संगठन का आप क्या करते हो वो मुथालिक जी के साथ है... और लड़का... वो मैं आपको खुद दूंगा... पुलिस का जो सेटिंग है... वो भी करके दूंगा... कि वो भी करना पड़ेगा.
भवानीः पुलिस का सेटिंग भी करना पड़ेगा... बिना उसका तो नहीं होगा...
तहलकाः नहीं... होगा... तो वहां पर 3 फेज में जा रहा है..थ्री डाइमेंशनल.. संगठन का अलग... कार्यकर्ताओं का अलग...और पुलिस का अलग...
भवानीः पुलिस का अलग...
इसके बाद इस पर चर्चा होती है कि लेन-देन कैसे होगा. हम पूछते हैं कि क्या दंगों के लिए दी जाने वाली राशि नगद की बजाय चेक से दी जा सकती है. भवानी फौरन मना कर देता है. स्वाभाविक है कि दंगे के कारोबार में लेन-देन कानूनी तरीकों से नहीं हो सकता.
तहलका के प्रस्ताव पर श्री राम सेना के कार्यकर्ताओं का रवैया जितना सुनियोजित था उसे देखते हुए इस बात की संभावना बनती है कि संगठन पूर्व में भी इस तरह की गतिविधि में शामिल रहा है. इसमें कानून और पुलिस से निपटने और हिंसक गतिविधियों के बाद कानूनी खामियों का फायदा उठाकर बच नकलने की सेना की कुशलता भी जाहिर होती है.
उडुपी और मंगलौर में सेना के कार्यकर्ताओं से बातचीत में यह बात और मजबूती से सामने आई. काफी कोशिशों के बाद अत्तावर और जीतेश (सेना की उडुपी इकाई का प्रमुख) हमें उन कार्यकर्ताओं से मिलवाने के लिए तैयार हो गए जिन्हें हमले को अंजाम देना था. कुमार और सुधीर पुजारी नाम के ऐसे दो युवा कार्यकर्ता खुलेआम इस बात को स्वीकार कर रहे थे कि वे मंगलौर के पब सहित सेना के कई हिंसक प्रदर्शनों में शामिल रहे हैं. जीतेश, पुजारी और कुमार, तीनों पब हमले में शामिल होने के बावजूद पुलिस की गिरफ्त से बचने में कामयाब रहे. ये तीनों कई साल तक आरएसएस और बजरंग दल में भी रह चुके हैं.
कुछ मिनट की बातचीत के बाद वे बड़बोलेपन में बताते हैं कि किस तरह से उन्होंने पुलिस को चकमा दिया. कुमार एक और घटना के बारे में बताता है जिसमें आठ मुसलमान घायल हुए थे. वह कहता है, 'हमारे हमले के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.' जीतेश के पास इस तरह की तमाम कहानियां हैं. एक दिन पूर्व तहलका से मुलाकात में उसने हमें बताया था कि 2007 में उसने अपने दो साथियों के साथ मिलकर एक चर्च पर हमला किया था. उसके मुताबिक तीन या चार पादरियों को अस्पताल ले जाना पड़ा था जबकि जीतेश और उसके साथियों को जेल की हवा खानी पड़ी थी.
फिर जीतेश इससे भी ज्यादा वीभत्स एक दूसरी घटना का जिक्र करता है. वह उस वक्त केरल के कासरगोड़ में रहता था और बजरंग दल का सक्रिय कार्यकर्ता था. वह एक मस्जिद पर हुए हमले में शामिल था. वह बताता है कि किस तरह से उसने एक मौलवी पर तलवार से हमला किया था. मौलवी की मौत हो गई थी और जीतेश पर हत्या का आरोप लगा था. वह कहता है कि चार महीने जेल में रहने के बाद उसे जमानत मिल गई. उसके मुताबिक इस दौरान बजरंग दल ने उसकी काफी मदद की- वकील नियुक्त करने से लेकर जमानत के आवेदन तक. जेल से छूटने के बाद वह उडुपी आ गया. कुछ साल बाद जब मुथालिक ने श्री राम सेना बनाई तो वह उसमें शामिल हो गया.
हमारे साथ थोड़ा और सहज होने के बाद जीतेश ने एक और महत्वपूर्ण जानकारी दी. 2006 में उसने 100 दूसरे कार्यकर्ताओं के साथ एक हथियार प्रशिक्षण कैंप में हिस्सा लिया था जिसे श्री राम सेना ने आयोजित किया था. जिन हथियारों का इस्तेमाल उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान किया था उनमें ज्यादातर गैरलाइसेंसी थे. इससे ज्यादा जानकारी देने के लिए वह तैयार नहीं था. एक दिन बाद अत्तावर से मुलाकात के दौरान वह हमारे साथ था और मंगलौर में प्रस्तावित हमले की योजना में शामिल होने की तैयारी कर रहा था.
अत्तावर और भवानी से मुलाकात के बाद- जिसमें वे बैंगलुरु, मंगलौर या मैसूर में हमला करने के लिए राजी थे- तहलका एक बार फिर से मुथालिक से मिला. एक चीज जो अभी भी तय करनी रह गई थी वह थी पैसे का आंकड़ा. मंगलौर जेल में अत्तावर से मुलाकात के दौरान रकम 50 से 60 लाख रुपए के बीच थी जबकि भवानी से 70 लाख पर सौदेबाजी हुई. तहलका ने मुथालिक से पूछा कि क्या यह रकम काफी है.
तहलकाः सर, क्या ये ठीक होगा कि मैं फोन पर प्रसाद जी के संपर्क मंे रहूं? क्योंकि फोन पर बात करने से परहेज करता हूं
मुथालिकः हां...हां...
तहलकाः प्रसाद जी तो ठीक है...लेकिन एक बार मैं आपसे कनफर्म करना चाहता था, हो सकता हैै शर्मा जी को यह ठीक न लगे लेकिन मैं पैसे के बारे में साफ बात करना चाहता हूं...क्याेंकि मुझसे तीन जगहों के लिए 60 लाख रुपए की बात कही गई थी
मुथालिकः हां
तहलकाः 60 लाख रुपए...आपकी तरफ से यह है ना?
मुथालिकः इस बारे में आपसे किसने कहा?
तहलकाः वसंत जी ने कहा था...
मुथालिकः हां...हां...
तहलकाः इसलिए मैंने सोचा कि एक बार और कनफर्म कर लूं...
मुथालिकः हां...हां...मैं पैसे के बारे में नहीं बता सकता...यह उनका काम है ये वही कर सकते है.
इस खबर के प्रेस में जाने तक अत्तावर और उसके वकील संजय सोलंकी हमले की रूपरेखा और रकम तय करने के लिए तहलका के संपर्क में थे. सोलंकी ने तहलका को आश्वासन दिया कि सौदा पक्का करने और रकम का आंकड़ा तय करने के लिए अत्तावर के साथ हमारी बातचीत बहुत जल्दी संभव होगी.
मगर हमें इसकी जरूरत नहीं थी.